अयोध्या की आकर्षक छवि (Attractions of Ayodhya)
इस पौराणिक नगरी में बचे हुए कुछ खंडहर ही ऐतिहासिकता के पदचिन्ह नजर आते हैं। लेकिन फिर भी अभी यहां ऐसी बहुत सी इमारतें हैं जो इसे धर्म और आस्था के रंग में रंगती हैं। अयोध्या के प्राचीन स्मारकों और धार्मिक स्थलों में सीता रसोई और हनुमानगढ़ी प्रमुख हैं। कुछ मंदिर अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के बने हुए भी हैं, इनमें कनक भवन, नागेश्वरनाथ और दर्शनसिंह मंदिर देखने लायक हैं। कुछ जैन मंदिर भी हैं। विभिन्न अवसरों पर यहां तीर्थ यात्री बड़ी संख्या में आते हैं।
अयोध्या के प्रमुख धार्मिक स्थल
रामकोट
अयोध्या के पश्चिमी छोर पर स्थित रामकोट हिन्दुओं को प्रमुख पूज्य स्थल है। यहां साल भर देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मार्च अप्रैल माह में यहां रामनवमी पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
हनुमान गढ़ी
अयोध्या के बीचों बीच स्थत इस मंदिर में 76 कदमों की चाल से पहुंचा जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान हनुमान यहां एक गुफा में निवास करते थे और राम जन्मभूमि ओर रामकोट की रक्षा किया करते थे। हनुमान गढ़ी में बाल हनुमान और उनकी माता अंजनि की प्रमिमा है। इस तरह का यह दुर्लभ मंदिर है। आस्थावानों की मान्यता है कि यहां मांगी गई मनौतियां पूर्ण होती हैं।
त्रेता के ठाकुर का मंदिर
ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर बना हुआ है जहां भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ आयोजित किया था। ऐतिहासिक तथ्यों से जानकारी मिलती है कि लगभग तीन सौ वर्ष पहले यहां कुल्ली के राजा ने एक नया मंदिर बनवाया था। मंदिर में सुधार कार्य 1784 में इंदौर के अहिल्या बाई होल्कर ने कराया। उन्हीं के समय में यहां कुछ घाटों का भी निर्माण कराया गया। नया मंदिर कालेराम का मंदिर नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर की प्रतिमा काले बलुआ पत्थर से निर्मित है। यह प्रतिमा सरयू नदी से मिली थी।
नागेश्वार नाथ मंदिर
यह खूबसूरत मंदिर भवगान राम के पुत्र कुश ने बनावाया था। इसके पीछे एक किंवदंती भी है। कहा जाता है एक बार कुश सरयू नदी में स्नान कर रहे थे। इस दौरान उनका बाजूबंद पानी में गिर गया। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला। यह कन्या कुश को चाहने लगी। वह नागकन्या शिवभक्त थी। उसी के लिए कुश ने यह मंदिर बनवाया। भगवान शिव के इस मंदिर में नागपंचमी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
कनक भवन
कनक भवन अयोध्या का एक प्रमुख मंदिर है। यह मंदिर हनुमान गढी के पास ही स्थित है। इस मंदिर में सीता और राम की प्रतिमाएं सोने का मुकुट धारण किए हुए हैं। प्रतिमाओं पर स्वर्णाभूषण होने के कारण इस मंदिर को सोने का घर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1891 में टीकमगढ़ की रानी ने किया था। इस मंदिर का श्री विग्रह अर्थात श्रीसीतारामजी का विग्रह भारत के सबसे सुंदर विग्रहों में से एक माना जाता है। यहां नित्य दर्शन के अलावा समैया उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है।
श्रीलक्ष्मण किला
यह स्थान संत स्वामी युगलानन्यशरण की तपस्थली है। देश भर में यह स्थान आचार्यपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। छपरा के स्वामी चिरान्द स्वामी युगलप्रिया शरण जीवाराम महाराज के शिष्य थे। 1818 में में ईशरामपुर यानि आज नालन्दा में जन्मे स्वामी युगलानन्यशरण जी का रामानन्दीय वैष्णव-समाज में विशिष्ट स्थान है। इन्होंने साधनात्मक जीवन जीने के साथ ही ‘रघुवर गुण दर्पण’,’पारस-भाग’,’श्री सीतारामनामप्रताप-प्रकाश’ तथा ‘इश्क-कान्ति’ आदि लगभग सौ ग्रन्थों की रचना की। लक्ष्मण किले का निर्माण इनकी तपस्या के प्रभाव से रीवां रियासत ने कराया था। बावन बीघा का यह विशाल क्षेत्र आश्रम की भूमि के लिए ब्रिटिश शासन से दान में मिला था। सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम भगवान राम की आराधना के साथ संत-गो-ब्राह्मण सेवा संचालित करता है। यहां राम नवमी , सावन झूला ,तथा श्रीराम विवाह महोत्सव भव्यता के साथ मनाये जाते हैं। यह स्थान तीर्थ-यात्रियों के ठहरने का उत्तम विकल्प है। सरयू की धार से सटा होने के कारण यहाँ सूर्यास्त दर्शन आकर्षण का केंद्र होता है |
जैन मंदिर
हिन्दुओं के मंदिरों के अलावा अयोध्या जैन मंदिरों के लिए भी लोकप्रिय है। जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं। अयोध्या को पांच जैन र्तीथकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। जहां जिस र्तीथकर का जन्म हुआ था, वहीं उस र्तीथकर का मंदिर बना हुआ है। इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था।
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