अयोध्या : (Ayodhya)
भारत के मध्यभाग में गंगा के उर्वर मैदानों में बसा राज्य है उत्तर प्रदेश। इस राज्य के फैजाबाद जिले में अयोध्या एक प्रमुख नगर है। आधुनिक भारत की तमाम उठा-पटक और विकास-परिवर्तन के बावजूद अयोध्या में अगर कुछ अपरिवर्तनीय है तो वह है इसकी पौराणिक महत्ता। अयोध्या को हिन्दू देवता भगवान राम के जन्मस्थली में रूप में जाना जाता है। हैरत की बात यह है कि हजारों वर्ष की इस कालावधि में देश के समस्त बड़े नगरों के नाम बदले। लेकिन अयोध्या आज भी अयोध्या है। साथ ही हिन्दु जनमानस में राम का अलौकिक रूप आज भी अलौकिक ही है और उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। सदियों से हिन्दू आस्था की प्रतीक रही यह नगरी 1996 में अचानक विवादों में आ गई। तत्कालीन भाजपानीत कल्याणसिंह सरकार के दौर में भगवान राम की जन्मस्थली से सटी बाबरी मस्जिद कारसेवकों ने ढहा दी। भाजपा का गठन हिन्दू और अधोध्या में राममंदिर के नाम पर हुआ था। तब से अधोध्या को एक नए रूप में देखा जा रहा है। धर्मनिरपेक्ष भारत में अयोध्या ने अपनी गतिविधियों से कुछ हलचल मचा दी है।
उत्तर प्रदेश की लगभग पूर्वी सीमा पर स्थित यह नगर अति प्राचीन है और जैसा रामायण में उल्लेख मिलता है यह नगर सरयू नदी के किनारे बसा हुआ था, वर्तमान में सरयू नदी को घाघरा के नाम से जाना जाता है। घाघरा नदी के दायें तट पर बसी यह अद्भुद नगरी अपने ऐतिहासिक प्रमाणों से यहां राम का जन्म होने की पुष्टि करती है। सतयुग में इस रियासत को कौशल देश के नाम से भी जाना जाता था। राम की उपलब्धियों और शासन व्यवस्था की निपुणता के कारण उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया। इसीलिए तब से लेकर आज तक यह नगर हिन्दू जनमानस में पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में ही पूजा जाता है।
अयोध्या का इतिहास
हिन्दू पुराणों में चार वेदों की बहुत महत्ता है। इन्हीं वेदों में से एक है अथर्ववेद। अथर्ववेद में अयोध्या को भगवान के नगर के रूप में उल्लेखित किया गया है। यह भी उल्लेख मिलता है कि अपनी सम्पन्नता के कारण यह नगर किसी समय स्वर्ग से तुलना करने योग्य था। यदि रामायण को आधार बनाकर खोज की जाए तो पाएंगे कि इस पावन नगरी की स्थापना राजा मनु ने की थी। इसके बाद कई वर्षों तक यह रियासत सूर्यवंशी राजाओं के अधिकार में रही। उस दौरान यहां भारतीय राजपूत शैली में कई ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण कराया गया। बाद में बौद्ध-प्रभाव के कारण यहां कई बौद्ध मठों और मंदिरों का भी निर्माण हुआ। इसके बाद जैन धर्म का प्रभाव हुआ एवं जैन मंदिरों की स्थापना हुई। जैन मतानुसार यहां आदिनाथ एवं पांच तीर्थकरों का जन्म हुआ था। मुगलों के आक्रमण में कई मंदिरों को ध्वस्त किया गया और मस्जिदों का निर्माण कराया गया। इस तरह यह नगर कई सदियों के धार्मिक प्रभाव से गुजरकर आस्था की एक बहुत बड़ी नगरी बन गया। इस नगर को ’धार्मिक स्थलों की नगरी’ के रूप में जाना जाने लगा। आज भी यहां हिंदू, बौद्ध, जैन और इस्लाम धर्म से जुड़े अनेक अवशेष यत्र-तत्र दिखाई पड़ते हैं।
अयोध्या का महत्व
अयोध्या के इतिहास में ही इसका महत्व समाहित है। एक बड़ी कालावधि तक यह शहर प्रतापी सूर्यवंशी क्षत्रियों की राजधानी रहा। दशरथ और उनके बाद राम भी सूर्यवंश से ही ताल्लुक रखते थे। राम अधोध्या क्षेत्र के सबसे प्रतापी राजा हुआ। उनके शासकीय और मानवीय व्यवहार ने उन्हें मर्यादापुरूषोत्तम की पदवी पर आसीन किया और बाद में वे अवतार की तरह पूजे जाने लगे। दशरथ से पूर्व यह जनपद कौशल नरेश की राजधानी रहा था। प्राचीन प्रमाणों में इसके विस्तार का भी उल्लेख मिलता है। कहा जाता है यह राजधानी 96 वर्ग मील की थी। उस समय इतने बड़े नगर की कल्पना अपने आप में एक अनोखी बात है। ऐतिहासिक तथ्यों से यहां सातवीं सदी में चीनी यात्री हेनत्सांग के आगमल का भी उल्लेख मिलता है। हेनत्सांग की यात्रा वर्णन कथा में यहां 20 बौद्ध मंदिरों और 3000 भिक्षुओं के रहने का विवरण किया गया है।
तीर्थस्थली अधोध्या
अपनी पौराणिक और ऐतिहासिक विशिष्टताओं के कारण अधोध्या को एक तीर्थ स्थल के रूप में आज भी पूजा जाता है। हर वर्ष यहां बड़ी संख्या में आस्थावानों की आवाजाही तीर्थाटन के रूप में होती है। पर्यटन की दृष्टि से भी अधोध्या बेमिसाल नगर है। प्राचीन नगर के रूप में अधोध्या में कुछ खंडहर अवशेष हैं जो पुरावेत्ताओं और इतिहासकारों को आकर्षित करते हैं। इन अवशेषों में सीतारसोई और हनुमानगढ़ी प्रमुख हैं। कुछ मंदिर अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के भी हैं, जिनमें कनक भवन, नागेश्वर नाथ और दर्शनसिंह मंदिर मुख्य हैं। अपने स्थापत्य के कारण ये दर्शनीय हैं। कुछ पुराने जैन मंदिर हैं। अयोध्या अपनी पौराणिकता के कारण एक सांस्कृतिक नगर भी है। यहां मार्च-अप्रैल, जुलाई-अगस्त और अक्टूबर-नवंबर में विशाल मेले लगते हैं जिनमें देश भर ये तीर्थाटन के लिए लाखों यात्री आते हैं।
Leave a Reply